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28 “हुआँ चाँदी क खान बाटइ जहाँ लोग चाँदी पावत हीं,
    हुआँ अइसे ठउर अहइँ लोग सोना देघराइके ओका सुद्ध करत हीं।
लोग धरती स खनिके तोहा निकारत हीं,
    अउर चट्टानन स टेघाराइके ताँबा निकारत हीं।
लोग सबइ गुफा मँ प्रकास लिआवत हीं उ पचे सबइ गुफा क गहिराइ मँ हेरा करत हीं,
    घना अँधियारा मँ उ पचे खनिज क चट्टानन हेरत हीं।
जहाँ लोग रहत हीं ओहसे बहोत दूर लोग गहिर गड़हा खना करत हीं
    कबहुँ कउनो अउर एँन गड़हन क नाहीं छुएस।
    जब मनई गहिरे गड़हन मँ रस्सन लटकत ह, तउ उ दूसरन बहोत दूर होत ह।
भोजन धरती क सतह स मिला करत ह,
    मुला धरती क भीतर उ बढ़त जावा करत ह
    जइसे आगी चिजियन क बदल देत ह।
धरती क भीतरे चट्टानन क खाले नीलम मिलि जात हीं,
    अउर धरती क खाले माटी आपन आप मँ सोना राखत ह।
जंगली पंछी धरती क खाले क राहन नाहीं जानत हीं
    न हीं कउनो बाज इ मारग लखत ह।
उ राहन पइ कउनो बड़का डीलडोल वाला पसु नाहीं चलेन,
    कबहुँ सेर इ राहे पइ नाहीं विचरेन।
मजदूर सब स कठोर चट्टानन क खनत हीं
    अउर उ पचे पहाड़न क ओकार जड़ स खनिके गिरा देत हीं।
10 काम करइवालन चट्टानन स सुरंग काटत हीं
    उ पचन्क आँखन हुआँ खजानन क लखि लेत हीं।
11 काम करइवालन बाँध बनवा करत हीं कि पानी ऊपर स होइके न बहइ।
    उ पचे छिपी भइ चिजियन क ऊपर प्रकास मँ लिआवत हीं।

12 “मुला कउनो मनई विवेक कहाँ पाइ सकत ह
    अउर हम कहाँ जाइ सकित ह समुझ पावइ क?
13 गियान कहाँ रहत ह लोग नाहीं जानत हीं
    लोग जउन धरती पइ रहत हीं, ओमाँ इ नाहीं पाइ जात ह।
14 सागरे क गहराइ बतावत ह, ‘मोह माँ गियान नाहीं।’
    अउर समुद्दर कहत ह, ‘हिआँ मोहमाँ गियान नाहीं अहइ।’
15 गियान क बहोत कीमती सोना भी मोल नाहीं लइ सकत ह,
    गियान क दाम चाँदी स नाहीं गना जाइ सकत ह।
16 गियान ओपरी देस क सोना स
    या कीमती सुलैमानी पाथर या नीलमणियन स नाहीं बेसहा जाइ सकत ह।
17 गियान सोना अउ स्फटिक ल जियादा कीमती बाटइ,
    कउनो मनई बहोत कीमती सोना स जड़े भए रलन स गियान नाहीं बेसहि सकत ह।
18 गियान मूँगा अउ सूर्यकान्त मणि स जियादा कीमती बा।
    गियान क कनोउ मनई सिद्ध सोने मँ जुरे कीमती रतन स नाहीं बेसहा सकत ह।
19 जेतना उत्तिम गियान अहइ कूस देस क पद्मराग भी ओतना उत्तिम नाहीं अहइ।
    गियान क तू चोख सोना स मोल नाहीं लइ सकत्या।

20 “तउ फुन हम कहाँ गियान क पावइ जाइ?
    हम कहाँ समुझ सीखइ जाइ?
21 गियान धरती क हर मनई स लुका भवा अहइ।
    हिआँ तलक कि ऊँच अकास क पंछी भी गियान क नाहीं लखि पावत हीं।
22 मउत अउ विनास कहा करत हीं,
    ‘हम तउ बस
    गियान क बातन सुनी ह।’

23 “मुला बस परमेस्सर गियान तलक पहोंचइ क राहे क जानत ह।
    परमेस्सर जानत ह गियान कहाँ रहत ह।
24 परमेस्सर गियान क जानत ह काहेकि उ धरती क अखिरी छोर तलक लखा करत ह।
    परमेस्सर उ हर वस्तु क जउन अकास क खाले अहइ लखा करत ह।
25 जब परमेस्सर हवा क ओकर सक्ती दइ दिहस
    अउर इ निहचित किहस कि समुद्दरन क केतना बड़का बनावइ क अहइ।
26 अउर जब परमेस्सर निहचय किहस कि ओका कहाँ स बर्खा पठवइ क अहइ,
    अउर बउड़रन क कहाँ तलक जात्रा करइ क अहइ।
27 तब परमेस्सर गियान क लखे रहा।
    उ ओका मापेस, ओका साबित किहेस अउर इका परखेस।
28 अउर लोगन स परमेस्सर कहे रहा कि
    ‘यहोवा क भय माना अउर ओका आदर दया।
    बुराइयन स मुहँ मोड़ि लेब ही गियान अहइ, इहइ समझदारी अहइ।’”