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दान की शिक्षा

“सावधान रहो! परमेश्वर चाहता है, उन कामों का लोगों के सामने दिखावा मत करो नहीं तो तुम अपने परम-पिता से, जो स्वर्ग में है, उसका प्रतिफल नहीं पाओगे।

“इसलिये जब तुम किसी दीन-दुःखी को दान देते हो तो उसका ढोल मत पीटो, जैसा कि आराधनालयों और गलियों में कपटी लोग औंरों से प्रशंसा पाने के लिए करते हैं। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि उन्हें तो इसका पूरा फल पहले ही दिया जा चुका है। किन्तु जब तू किसी दीन दुःखी को देता है तो तेरा बायाँ हाथ न जान पाये कि तेरा दाहिना हाथ क्या कर रहा है। ताकि तेरा दान छिपा रहे। तेरा वह परम पिता जो तू छिपाकर करता है उसे भी देखता है, वह तुझे उसका प्रतिफल देगा।

प्रार्थना का महत्व

(लूका 11:2-4)

“जब तुम प्रार्थना करो तो कपटियों की तरह मत करो। क्योंकि वे यहूदी आराधनालयों और गली के नुक्कड़ों पर खड़े होकर प्रार्थना करना चाहते हैं ताकि लोग उन्हें देख सकें। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि उन्हें तो उसका फल पहले ही मिल चुका है। किन्तु जब तू प्रार्थना करे, अपनी कोठरी में चला जा और द्वार बन्द करके गुप्त रूप से अपने परम-पिता से प्रार्थना कर। फिर तेरा परम-पिता जो तेरे छिपकर किए गए कर्मों को देखता है, तुझे उन का प्रतिफल देगा।

“जब तुम प्रार्थना करते हो तो विधर्मियों की तरह यूँ ही निरर्थक बातों को बार-बार मत दुहराते रहो। वे तो यह सोचते हैं कि उनके बहुत बोलने से उनकी सुन ली जायेगी। इसलिये उनके जैसे मत बनो क्योंकि तुम्हारा परम-पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है कि तुम्हारी आवश्यकता क्या है। इसलिए इस प्रकार प्रार्थना करो:

‘स्वर्ग धाम में हमारे पिता,
    तेरा नाम पवित्र रहे।
10 जगत में तेरा राज्य आए।
    तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे ही पृथ्वी पर भी पूरी हो।
11 दिन प्रतिदिन का आहार तू आज हमें दे।
12 अपराधों को क्षमा दान कर
    जैसे हमने अपने अपराधी क्षमा किये।
13 हमें परीक्षा में न ला
    परन्तु बुराई से बचा।’[a]

14 यदि तुम लोगों के अपराधों को क्षमा करोगे तो तुम्हारा स्वर्ग-पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। 15 किन्तु यदि तुम लोगों को क्षमा नहीं करोगे तो तुम्हारा परम-पिता भी तुम्हारे पापों के लिए क्षमा नहीं देगा।

उपवास की व्याख्या

16 “जब तुम उपवास करो तो मुँह लटकाये कपटियों जैसे मत दिखो। क्योंकि वे तरह तरह से मुँह बनाते हैं ताकि वे लोगों को जतायें कि वे उपवास कर रहे हैं। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ उन्हें तो पहले ही उनका प्रतिफल मिल चुका है। 17 किन्तु जब तू उपवास रखे तो अपने सिर पर सुगंध मल और अपना मुँह धो। 18 ताकि लोग यह न जानें कि तू उपवास कर रहा है। बल्कि तेरा परम-पिता जिसे तू देख नहीं सकता, देखे कि तू उपवास कर रहा है। तब तेरा परम पिता जो तेरे छिपकर किए गए सब कर्मों को देखता है, तुझे उनका प्रतिफल देगा।

परमेश्वर धन से बड़ा है

(लूका 12:33-34; 11:34-36; 16:13)

19 “अपने लिये धरती पर भंडार मत भरो। क्योंकि उसे कीड़े और जंग नष्ट कर देंगे। चोर सेंध लगाकर उसे चुरा सकते हैं। 20 बल्कि अपने लिये स्वर्ग में भण्डार भरो जहाँ उसे कीड़े या जंग नष्ट नहीं कर पाते। और चोर भी वहाँ सेंध लगा कर उसे चुरा नहीं पाते। 21 याद रखो जहाँ तुम्हारा भंडार होगा वहीं तुम्हारा मन भी रहेगा।

22 “शरीर के लिये प्रकाश का स्रोत आँख है। इसलिये यदि तेरी आँख ठीक है तो तेरा सारा शरीर प्रकाशवान रहेगा। 23 किन्तु यदि तेरी आँख बुरी हो जाए तो तेरा सारा शरीर अंधेरे से भर जायेगा। इसलिये वह एकमात्र प्रकाश जो तेरे भीतर है यदि अंधकारमय हो जाये तो वह अंधेरा कितना गहरा होगा।

24 “कोई भी एक साथ दो स्वामियों का सेवक नहीं हो सकता क्योंकि वह एक से घृणा करेगा और दूसरे से प्रेम। या एक के प्रति समर्पित रहेगा और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम धन और परमेश्वर दोनों की एक साथ सेवा नहीं कर सकते।

चिंता छोड़ो

(लूका 12:22-34)

25 “मैं तुमसे कहता हूँ अपने जीने के लिये खाने-पीने की चिंता छोड़ दो। अपने शरीर के लिये वस्त्रों की चिंता छोड़ दो। निश्चय ही जीवन भोजन से और शरीर कपड़ों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। 26 देखो! आकाश के पक्षी न तो बुआई करते हैं और न कटाई, न ही वे कोठारों में अनाज भरते हैं किन्तु तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनका भी पेट भरता है। क्या तुम उनसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो? 27 तुम में से क्या कोई ऐसा है जो चिंता करके अपने जीवन काल में एक घड़ी भी और बढ़ा सकता है?

28 “और तुम अपने वस्त्रों की क्यों सोचते हो? सोचो जंगल के फूलों की वे कैसे खिलते हैं। वे न कोई काम करते हैं और न अपने लिए कपड़े बनाते हैं। 29 मैं तुमसे कहता हूँ कि सुलेमान भी अपने सारे वैभव के साथ उनमें से किसी एक के समान भी नहीं सज सका। 30 इसलिये जब जंगली पौधों को जो आज जीवित हैं पर जिन्हें कल ही भाड़ में झोंक दिया जाना है, परमेश्वर ऐसे वस्त्र पहनाता है तो अरे ओ कम विश्वास रखने वालों, क्या वह तुम्हें और अधिक वस्त्र नहीं पहनायेगा?

31 “इसलिये चिंता करते हुए यह मत कहो कि ‘हम क्या खायेंगे या हम क्या पीयेंगे या क्या पहनेंगे?’ 32 विधर्मी लोग इन सब वस्तुओं के पीछे दौड़ते रहते हैं किन्तु स्वर्ग धाम में रहने वाला तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है। 33 इसलिये सबसे पहले परमेश्वर के राज्य और तुमसे जो धर्म भावना वह चाहता है, उसकी चिंता करो। तो ये सब वस्तुएँ तुम्हें दे दी जायेंगी। 34 कल की चिंता मत करो, क्योंकि कल की तो अपनी और चिंताएँ होंगी। हर दिन की अपनी ही परेशानियाँ होती हैं।

Footnotes

  1. 6:13 कुछ यूनानी प्रतियों में यह भाग जोड़ा गया है: “क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही हैं। आमीन।”

दान का गुप्त होना ज़रूरी है

“ध्यान रहे कि तुम लोगों की प्रशंसा पाने के उद्देश्य से धर्म के काम न करो अन्यथा तुम्हें तुम्हारे स्वर्गीय पिता से कोई भी प्रतिफल प्राप्त न होगा. जब तुम दान दो तब इसका ढिंढोरा न पीटो, जैसा पाखण्डी यहूदी-सभागृहों तथा सड़कों पर किया करते हैं कि वे मनुष्यों द्वारा सम्मानित किए जाएँ. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्त कर चुके; किन्तु तुम जब ज़रूरतमन्दों को दान दो तो तुम्हारे बायें हाथ को यह मालूम न हो सके कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है कि तुम्हारी दान प्रक्रिया पूरी तरह गुप्त रहे. तब तुम्हारे पिता, जो अन्तर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे.

प्रार्थना का गुप्त होना ज़रूरी है

“प्रार्थना करते हुए तुम्हारी मुद्रा दिखावा करने वाले लोगों के समान न हो क्योंकि उनकी रुचि यहूदी-सभागृहों में तथा नुक्कड़ों पर खड़े हो कर प्रार्थना करने में होती है कि उन पर लोगों की दृष्टि पड़ती रहे. मैं तुम पर यह सच प्रकाशित कर रहा हूँ कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्त कर चुके. इसके विपरीत जब तुम प्रार्थना करो, तुम अपनी कोठरी में चले जाओ, द्वार बन्द कर लो और अपने पिता से, जो अदृश्य हैं, प्रार्थना करो और तुम्हारे पिता, जो अन्तर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे.

प्रार्थना प्रतिरूप: जैसा प्रभु ने सिखाया

“अपनी प्रार्थना में अर्थहीन शब्दों को दोहराते न जाओ, जैसा अन्यजाति करते हैं क्योंकि उनका विचार है कि शब्दों के अधिक होने के कारण ही उनकी प्रार्थना सुनी जाएगी. इसलिए उनके समान न बनो क्योंकि तुम्हारे स्वर्गीय पिता को विनती करने से पहले ही तुम्हारी ज़रूरत का अहसास रहता है.

प्रभु द्वारा दिया गया प्रार्थना का प्रतिमान

(लूकॉ 11:2-4)

“तुम प्रार्थना इस प्रकार किया करो:

“हमारे स्वर्गीय पिता, आपका नाम पवित्र रखा जाए.
10 आपका राज्य हर जगह हो.
आपकी इच्छा पूरी हो—
    जिस प्रकार स्वर्ग में उसी प्रकार पृथ्वी पर भी.
11 आज हमें हमारा दैनिक आहार प्रदान कीजिए.
12 जैसे हमने उन्हें क्षमा किया है,
    जिन्होंने हमारे विरुद्ध अपराध किए थे,
    उसी प्रकार आप भी हमारे अपराधों को क्षमा कर दीजिए.
13 हमें परीक्षा से बचा कर उस दुष्ट से हमारी रक्षा कीजिए क्योंकि राज्य,
सामर्थ्य तथा प्रताप सदा-सर्वदा आप ही का है. आमेन.

14 यदि तुम अन्यों को उनके अपराधों के लिए क्षमा करते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेंगे. 15 किन्तु यदि तुम अन्यों के अपराध क्षमा नहीं करते तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेंगे.

उपवास का गुप्त होना ज़रूरी है

16 “जब कभी तुम उपवास रखो तब पाखण्डियों के समान अपना मुँह मुरझाया हुआ न बना लो. वे अपना रूप ऐसा इसलिए बना लेते हैं कि लोगों की दृष्टि उन पर अवश्य पड़े. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्त कर चुके. 17 किन्तु जब तुम उपवास करो तो अपने बाल सँवारो और अपना मुँह धो लो 18 कि तुम्हारे उपवास के विषय में सिवाय तुम्हारे स्वर्गीय पिता के—जो अदृश्य हैं—किसी को भी मालूम न हो. तब तुम्हारे पिता, जो अन्तर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे.

वास्तविक धन

19 “पृथ्वी पर अपने लिए धन इकट्ठा न करो, जहाँ कीट-पतंगे तथा ज़ंग उसे नाश करते तथा चोर सेन्ध लगा कर चुराते हैं 20 परन्तु धन स्वर्ग में जमा करो, जहाँ न तो कीट-पतंगे या ज़ंग नाश करते और न ही चोर सेन्ध लगा कर चुराते हैं 21 क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहीं तुम्हारा मन भी होगा.

आँख—शरीर का दीपक

22 “शरीर का दीपक आँख है. इसलिए यदि तुम्हारी आँख निरोगी है, तुम्हारा सारा शरीर उजियाला होगा. 23 यदि तुम्हारी आँख रोगी है, तुम्हारा सारा शरीर अन्धकारमय हो जाएगा. वह उजियाला, जो तुम में है, यदि वह अन्धकार है तो कितना गहन होगा वह अन्धकार!

24 “कोई भी व्यक्ति दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता क्योंकि वह एक को तुच्छ मान कर दूसरे के प्रति समर्पित रहेगा या एक का सम्मान करते हुए दूसरे को तुच्छ जानेगा. तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा कर ही नहीं सकते.

परमेश्वर का प्रबन्ध ही विश्वासयोग्य है

25 “यही कारण है कि मैं तुमसे कहता हूँ कि अपने जीवन के विषय में चिन्ता न करो कि तुम क्या खाओगे और क्या पिओगे; और न ही शरीर के विषय में कि क्या पहनोगे. क्या जीवन आहार से और शरीर वस्त्रों से अधिक कीमती नहीं? 26 पक्षियों की ओर ध्यान दो: वे न तो बीज बोते हैं और न ही खलिहान में उपज इकट्ठा करते हैं. फिर भी तुम्हारे स्वर्गीय पिता उनका भरण-पोषण करते हैं. क्या तुम्हारी महत्ता उनसे कहीं अधिक नहीं? 27 और तुम में ऐसा कौन है, जो चिन्ता के द्वारा अपनी आयु में एक क्षण की भी वृद्धि कर सकता है?

28 “और वस्त्र तुम्हारी चिन्ता का विषय क्यों? मैदान के फूलों का ध्यान तो करो कि वे कैसे खिलते हैं. वे न तो परिश्रम करते हैं और न ही वस्त्र-निर्माण. 29 फिर भी मैं तुमसे कहता हूँ कि शलोमोन की वेष-भूषा का ऐश्वर्य किसी भी दृष्टि से इनके तुल्य नहीं था. 30 यदि परमेश्वर घास का श्रृंगार इस सीमा तक करते हैं, जिसका जीवन थोड़े समय का है और जो कल आग में झोंक दिया जाएगा, क्या वह तुमको कहीं अधिक सुशोभित न करेंगे? कैसा कमज़ोर है तुम्हारा विश्वास! 31 इसलिए इस विषय में चिन्ता न करो कि हम क्या खाएँगे या क्या पिएंगे या हमारे वस्त्रों का प्रबन्ध कैसे होगा? 32 अन्यजाति ही इन वस्तुओं के लिए कोशिश करते रहते हैं. तुम्हारे स्वर्गीय पिता को यह मालूम है कि तुम्हें इन सबकी ज़रूरत है. 33 तुम्हारी सबसे पहली प्राथमिकता परमेश्वर का राज्य तथा उनकी धार्मिकता की उपलब्धि हो और ये सभी वस्तुएं भी तुम्हें प्राप्त होती जाएँगी. 34 इसलिए कल की चिन्ता न करो—कल अपनी चिन्ता स्वयं करेगा क्योंकि हर एक दिन अपने साथ अपना ही पर्याप्त दुःख लिए हुए आता है.