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पत्नी और पति

इसी प्रकार हे पत्नियों, अपने अपने पतियों के प्रति समर्पित रहो। ताकि यदि उनमें से कोई परमेश्वर के वचन का पालन नहीं करते हों तो तुम्हारे पवित्र और आदरपूर्ण चाल चलन को देखकर बिना किसी बातचीत के ही अपनी-अपनी पत्नियों के व्यवहार से जीत लिए जाएँ। तुम्हारा साज-श्रृंगार दिखावटी नहीं होना चाहिए। अर्थात् जो केशों की वेणियाँ सजाने, सोने के आभूषण पहनने और अच्छे-अच्छे कपड़ों से किया जाता है, बल्कि तुम्हारा श्रृंगार तो तुम्हारे मन का भीतरी व्यक्तित्व होना चाहिए जो कोमल और शान्त आत्मा के अविनाशी सौन्दर्य से युक्त हो। परमेश्वर की दृष्टि में जो मूल्यवान हो।

क्योंकि बीते युग की उन पवित्र महिलाओं का, अपने आपको सजाने-सँवारने का यही ढंग था, जिनकी आशाएँ परमेश्वर पर टिकी हैं। वे अपने अपने पति के अधीन वैसे ही रहा करती थीं। जैसे इब्राहीम के अधीन रहने वाली सारा जो उसे अपना स्वामी मानती थी। तुम भी बिना कोई भय माने यदि नेक काम करती हो तो उसी की बेटी हो।

ऐसे ही हे पतियों, तुम अपनी पत्नियों के साथ समझदारी पूर्वक रहो। उन्हें निर्बल समझ कर, उनका आदर करो। जीवन के वरदान में उन्हें अपना सह उत्तराधिकारी भी मानो ताकि तुम्हारी प्रार्थनाओं में बाधा न पड़े।

सतकर्मों के लिए दुःख झेलना

अन्त में तुम सब को समानविचार, सहानुभूतिशील, अपने बन्धुओं से प्रेम करने वाला, दयालु और नम्र बनना चाहिए। एक बुराई का बदला दूसरी बुराई से मत दो। अथवा अपमान के बदले अपमान मत करो बल्कि बदले में आशीर्वाद दो क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें ऐसा ही करने को बुलाया है। इसी से तुम्हें परमेश्वर के आशीर्वाद का उत्तराधिकार मिलेगा। 10 शास्त्र कहता है:

“जो जीवन का आनन्द उठाना चाहे
    जो समय की सद्गति को देखना चाहे
उसे चाहिए वह कभी कहीं बुरे बोल न बोले।
    वह अपने होठों को छल वाणी से रोके
11 उसे चाहिए वह मुँह फेरे उससे जो नेक नहीं होता वह उन कर्मों को सदा करे जो उत्तम हैं,
    उसे चाहिए यत्नशील हो शांति पाने को उसे चाहिए वह शांति का अनुसरण करे।
12 प्रभु की आँखें टिकी हैं उन्हीं पर जो उत्तम हैं
    प्रभु के कान लगे उनकी प्रार्थनाओं पर जो बुरे कर्म करते हैं,
प्रभु उनसे सदा मुख फेरता है।”(A)

13 यदि जो उत्तम है तुम उसे ही करने को लालायित रहो तो भला तुम्हें कौन हानि पहुँचा सकता है। 14 किन्तु यदि तुम्हें भले के लिए दुःख उठाना ही पड़े तो तुम धन्य हो। “इसलिए उनके किसी भी भय से न तो भयभीत होवो और न ही विचलित।” 15 अपने मन में मसीह को प्रभु के रूप में आदर दो। तुम सब जिस विश्वास को रखते हो, उसके विषय में यदि कोई तुमसे पूछे तो उसे उत्तर देने के लिए सदा तैयार रहो। 16 किन्तु विनम्रता और आदर के साथ ही ऐसा करो। अपना हृदय शुद्ध रखो ताकि यीशु मसीह में तुम्हारे उत्तम आचरण की निन्दा करने वाले लोग तुम्हारा अपमान करते हुए लजायें।

17 यदि परमेश्वर की इच्छा यही है कि तुम दुःख उठाओ तो उत्तम कार्य करते हुए दुःख झेलो न कि बुरे काम करते हुए।

18 क्योंकि मसीह ने भी हमारे पापों
    के लिए दुःख उठाया।
अर्थात् वह जो निर्दोष था
    हम पापियों के लिये एक बार मर गया
    कि हमें परमेश्वर के समीप ले जाये।
शरीर के भाव से तो वह मारा गया
    पर आत्मा के भाव से जिलाया गया।

19 आत्मा की स्थिति में ही उसने जाकर उन स्वर्गीय आत्माओं को जो बंदी थीं उन बंदी आत्माओं को संदेश दिया 20 जो उस समय परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानने वाली थी जब नूह की नाव बनायी जा रही थी और परमेश्वर धीरज के साथ प्रतीक्षा कर रहा था उस नाव में थोड़े से अर्थात् केवल आठ व्यक्ति ही पानी से बच पाये थे। 21 यह पानी उस बपतिस्मा के समान है जिससे अब तुम्हारा उद्धार होता है। इसमें शरीर का मैल छुड़ाना नहीं, वरन एक शुद्ध अन्तःकरण के लिए परमेश्वर से विनती है। अब तो बपतिस्मा तुम्हें यीशु मसीह के पुनरुत्थान द्वारा बचाता है। 22 वह स्वर्ग में परमेश्वर के दाहिने विराजमान है, और अब स्वर्गदूत, अधिकारीगण और सभी शक्तियाँ उसके अधीन कर दी गयी है।

पत्नियो, अपने-अपने पति के अधीन रहो, जिससे कि यदि उनमें से कोई परमेश्वर के वचन के प्रति आज्ञा न माननेवाले हों तो वे तुम्हारे कुछ कहे बिना ही अपनी-अपनी पत्नियों के स्वभाव के द्वारा विश्वास में शामिल किए जा सकें, क्योंकि वे तुम्हारे पवित्र तथा अच्छे स्वभाव को देखते रहते हैं. तुम्हारा सौन्दर्य सिर्फ दिखावटी न हो, जैसे बाल संवारना, सोने के गहने व वस्त्रों से सजना; परन्तु तुम्हारा भीतरी व्यक्तित्व नम्रता व मन की दीनता जैसे अविनाशी गुणों से सजा हुआ हो, जो परमेश्वर की दृष्टि में बहुमूल्य हैं. पूर्वकाल में पवित्र स्त्रियाँ, जिनकी भक्ति परमेश्वर में थी, अपने पति के अधीन रहते हुए इसी रीति से श्रृंगार करती थीं. साराह अब्राहाम को स्वामी सम्बोधित करते हुए उनकी आज्ञाकारी रहीं. यदि तुम निड़र होकर वही करती हो, जो उचित है, तो तुम उनकी सन्तान हो गई हो.

तुम, जो पति हो, इसी प्रकार अपनी-अपनी पत्नी के साथ सम्वेदनशील होकर रहो क्योंकि वह नारी है—निर्बल पात्र. जीवन के अनुग्रह के संगी वारिस के रूप में उसे सम्मान दो कि किसी रीति से तुम्हारी प्रार्थनाएँ रुक न जाएं.

भाईचारे के प्रति

अन्ततः:, तुम सब हृदय में मैत्री भाव बनाए रखो; सहानुभूति रखो; आपस में प्रेम रखो, करुणामय और नम्र बनो; बुराई का बदला बुराई से तथा निन्दा का उत्तर निन्दा से न दो; परन्तु इसके विपरीत, उन्हें आशीष ही दो क्योंकि इसी के लिए तुम बुलाए गए हो कि तुम्हें मीरास में आशीष प्राप्त हो, 10 क्योंकि लिखा है:

“वह, जो जीवन से प्रेम करना और भले दिन देखना चाहे,
    अपनी जीभ को बुराई से,
    अपने होठों को छल की बातों से बचाए रखे;
11 तथा बुराई से अलग होकर
    भलाई करे; वह शान्ति को खोजे और उसका पालन करे.
12 क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि धर्मियों पर
    तथा उनके कान उनकी विनती पर लगे रहते हैं
परन्तु वह बुराई करनेवालों से दूर रहते हैं.”

13 यदि तुम में भलाई की धुन है तो तुम्हें हानि कौन पहुंचाएगा? 14 परन्तु यदि तुम वास्तव में धार्मिकता के कारण कष्ट सहते हो, तो तुम आशीषित हो. उनकी धमकियों से न तो डरो और न घबराओ. 15 मसीह को अपने हृदय में प्रभु के रूप में बसा लो. तुम्हारे अन्दर बसी हुई आशा के प्रति जिज्ञासु हर एक व्यक्ति को उत्तर देने के लिए हमेशा तैयार रहो 16 किन्तु विनम्रता और सम्मान के साथ. अपना विवेक शुद्ध रखो कि जिन विषयों में वे, जो मसीह में तुम्हारे उत्तम स्वभाव की निन्दा करते हैं, लज्जित हों. 17 भलाई के कामों के लिए दुःख सहना अच्छा है—यदि यही परमेश्वर की इच्छा है—इसकी बजाय कि बुराई के लिए दुःख सहा जाए.

18 मसीह ने भी पापों के लिए एक ही बार प्राणों को दे दिया—एक धर्मी ने सभी अधर्मियों के लिए—कि वह तुम्हें परमेश्वर तक ले जाएँ. उनकी शारीरिक मृत्यु तो हुई किन्तु परमेश्वर की आत्मा के द्वारा वह जीवित किए गए. 19 उन्होंने आत्मा ही में जाकर कैदी आत्माओं के सामने प्रचार किया. 20 ये उस युग की आज्ञा न मानने वाली आत्माएँ थीं, जब नोहा द्वारा जलयान निर्माण के समय परमेश्वर धीरज के साथ प्रतीक्षा करते रहे थे. उस जलयान में केवल कुछ ही व्यक्ति—कुल आठ—प्रलयकारी जल से सुरक्षित रखे गए थे. 21 उसके अनुसार जलयान में उनका प्रवेश बपतिस्मा का दृष्टान्त है, जो अब तुम्हें भी सुरक्षित रखता है. बपतिस्मा का अर्थ शरीर की मलिनता से स्वच्छ करना नहीं परन्तु मसीह येशु के पुनरुत्थान के द्वारा परमेश्वर के प्रति शुद्ध विवेक से प्रतिज्ञा है. 22 मसीह येशु स्वर्ग में जाकर परमेश्वर की दायीं ओर बैठ गए और सारे स्वर्गदूतों, अधिकारियों तथा शक्तियों को उनके अधीन कर दिया गया.