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परमेश्वर जो देता है उसका उपयोग करो

(मत्ती 25:14-30)

11 वे जब इन बातों को सुन रहे थे तो यीशु ने उन्हें एक और दृष्टान्त-कथा सुनाई क्योंकि यीशु यरूशलेम के निकट था और वे सोचते थे कि परमेश्वर का राज्य तुरंत ही प्रकट होने जा रहा है। 12 सो यीशु ने कहा, “एक उच्च कुलीन व्यक्ति राजा का पद प्राप्त करके आने को किसी दूर देश को गया। 13 सो उसने अपने दस सेवकों को बुलाया और उनमें से हर एक को दस दस थैलियाँ दी और उनसे कहा, ‘जब तक मैं लौटूँ, इनसे कोई व्यापार करो।’[a] 14 किन्तु उसके नगर के दूसरे लोग उससे घृणा करते थे, इसलिये उन्होंने उसके पीछे यह कहने को एक प्रतिनिधि मंडल भेजा, ‘हम नहीं चाहते कि यह व्यक्ति हम पर राज करे।’

15 “किन्तु उसने राजा की पदवी पा ली। फिर जब वह वापस घर लौटा तो जिन सेवकों को उसने धन दिया था उनको यह जानने के लिए कि उन्होंने क्या लाभ कमाया है, उसने बुलावा भेजा। 16 पहला आया और बोला, ‘हे स्वामी, तेरी थैलियों से मैंने दस थैलियाँ और कमायी है।’ 17 इस पर उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘उत्तम सेवक, तूने अच्छा किया। क्योंकि तू इस छोटी सी बात पर विश्वास के योग्य रहा। तू दस नगरों का अधिकारी होगा।’

18 “फिर दूसरा सेवक आया और उसने कहा, ‘हे स्वामी, तेरी थैलियों से पाँच थैलियाँ और कमाई हैं।’ 19 फिर उसने इससे कहा, ‘तू पाँच नगरों के ऊपर होगा।’

20 “फिर वह अन्य सेवक आया और कहा, ‘हे स्वामी, यह रही तेरी थैली जिसे मैंने गमछे में बाँध कर कहीं रख दिया था। 21 मैं तुझ से डरता रहा हूँ, क्योंकि तू, एक कठोर व्यक्ति है। तूने जो रखा नहीं है तू उसे भी ले लेता है और जो तूने बोया नहीं तू उसे काटता है।’

22 “स्वामी ने उससे कहा, ‘अरे दुष्ट सेवक, मैं तेरे अपने ही शब्दों के आधार पर तेरा न्याय करूँगा। तू तो जानता ही है कि में जो रखता नहीं हूँ, उसे भी ले लेने वाला और जो बोता नहीं हूँ, उसे भी काटने वाला एक कठोर व्यक्ति हूँ? 23 तो तूने मेरा धन ब्याज पर क्यों नहीं लगाया, ताकि जब मैं वापस आता तो ब्याज समेत उसे ले लेता।’ 24 फिर पास खड़े लोगों से उसने कहा, ‘इसकी थैली इससे ले लो और जिसके पास दस थैलियाँ हैं उसे दे दो।’

25 “इस पर उन्होंने उससे कहा, ‘हे स्वामी, उसके पास तो दस थैलियाँ है।’

26 “स्वामी ने कहा, ‘मैं तुमसे कहता हूँ प्रत्येक उस व्यक्ति को जिसके पास है और अधिक दिया जायेगा और जिसके पास नहीं है, उससे जो उसके पास है, वह भी छीन लिया जायेगा। 27 किन्तु मेरे वे शत्रु जो नहीं चाहते कि मैं उन पर शासन करूँ उनको यहाँ मेरे सामने लाओ और मार डालो।’”

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Footnotes

  1. 19:13 थैलियाँ शाब्दिक, मीना। एक मीना बराबर उन दिनों का तीन महीने का वेतन।

दस सेवक तथा सराहनीय निवेश का दृष्टान्त

11 जब वे इन बातों को सुन रहे थे, मसीह येशु ने एक दृष्टान्त प्रस्तुत किया क्योंकि अब वे येरूशालेम नगर के पास पहुँच रहे थे और लोगों की आशा थी कि परमेश्वर का राज्य तुरन्त ही प्रकट होने पर है. 12 मसीह येशु ने कहना प्रारम्भ किया: “एक कुलीन व्यक्ति राजपद प्राप्त करने के लिए दूर देश की यात्रा पर निकला. 13 यात्रा के पहले उसने अपने दस दासों को बुला कर उन्हें दस सोने के सिक्के देते हुए कहा, ‘मेरे लौटने तक इस राशि से व्यापार करना.’”

14 “लोग उससे घृणा करते थे इसलिए उन्होंने उसके पीछे एक सेवकों की टुकड़ी को इस सन्देश के साथ भेजा, ‘हम नहीं चाहते कि यह व्यक्ति हम पर शासन करे.’”

15 “इस पर भी उसे राजा बना दिया गया. लौटने पर उसने उन दासों को बुलवाया कि वह यह मालूम करे कि उन्होंने उस राशि से व्यापार कर कितना लाभ कमाया है.

16 “पहिले दास ने आ कर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने दस सिक्के और कमाए हैं.’”

17 “‘बहुत बढ़िया, मेरे योग्य दास!’ स्वामी ने उत्तर दिया, ‘इसलिए कि तुम बहुत छोटी ज़िम्मेदारी में भी विश्वासयोग्य पाए गए, तुम दस नगरों की ज़िम्मेदारी सम्भालो.’

18 “दूसरे दास ने आ कर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने पाँच सोने के सिक्के और कमाए हैं.’

19 “स्वामी ने उत्तर दिया, ‘तुम पाँच नगरों की ज़िम्मेदारी सम्भालो.’”

20 “तब एक अन्य दास आया और स्वामी से कहने लगा, ‘स्वामी, यह है आपका दिया हुआ सोने का सिक्का, जिसे मैंने बड़ी ही सावधानी से कपड़े में लपेट, सम्भाल कर रखा है. 21 मुझे आप से भय था क्योंकि आप कठोर व्यक्ति हैं. आपने जिसका निवेश भी नहीं किया, वह आप ले लेते हैं, जो आपने बोया ही नहीं, उसे काटते हैं.’”

22 “स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘अरे ओ दुष्ट! तेरा न्याय तो मैं तेरे ही शब्दों के आधार पर करूँगा. जब तू जानता है कि मैं एक कठोर व्यक्ति हूँ; मैं वह ले लेता हूँ जिसका मैंने निवेश ही नहीं किया और वह काटता हूँ, जो मैंने बोया ही नहीं, तो 23 तूने मेरा धन साहूकारों के पास जमा क्यों नहीं कर दिया कि मैं लौटने पर उसे ब्याज सहित प्राप्त कर सकता?’”

24 “तब उसने अपने पास खड़े दासों को आज्ञा दी, ‘इसकी स्वर्ण मुद्रा ले कर उसे दे दो, जिसके पास अब दस मुद्राएं हैं.’”

25 “उन्होंने आपत्ति करते हुए कहा, ‘स्वामी, उसके पास तो पहले ही दस हैं!’” 26 “स्वामी ने उत्तर दिया, ‘सच्चाई यह है: हर एक, जिसके पास है, उसे और भी दिया जाएगा किन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है. 27 मेरे इन शत्रुओं को, जिन्हें मेरा उन पर शासन करना अच्छा नहीं लग रहा, यहाँ मेरे सामने ला कर प्राणदण्ड दो.’”

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