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41 “तू अपने भाई की आँख में कोई तिनके को क्यों देखता है और अपनी आँख का लट्ठा भी तुझे नहीं सूझता? 42 सो अपने भाई से तू कैसे कह सकता है: ‘बंधु, तू अपनी आँख का तिनका मुझे निकालने दे।’ जब तू अपनी आँख के लट्ठे तक को नहीं देखता! अरे कपटी, पहले अपनी आँख का लट्ठा दूर कर, तब तुझे अपने भाई की आँख का तिनका बाहर निकालने के लिये दिखाई दे पायेगा।

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41 “तुम अपने भाई के आँख में उस बुरादे के तिनके को क्यों देख रहे हो जबकि अपने आँख में पड़े लट्ठे का तुम्हें ज्ञान ही नहीं? 42 तुम अपने भाई से यह कैसे कह सकते हो, ‘भाई आओ, मैं तुम्हारी आँख में से बुरादे का तिनका निकाल दूँ’ जबकि स्वयं तुमको अपनी आँख में पड़ा लट्ठा दिखाई नहीं देता? अरे पाखण्डी! पहले अपनी आँख में से लट्ठा तो निकाल! तभी तुझे अपने भाई की आँख में से बुरादे का तिनका निकालने के लिए साफ़ दृष्टि मिल सकेगी.”

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