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सबसे बड़ा आदेश

(मरकुस 12:28-34; लूका 10:25-28)

34 जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने अपने उत्तर से सदूकियों को चुप करा दिया है तो वे सब इकट्ठे हुए 35 उनमें से एक यहूदी धर्मशास्त्री ने यीशु को फँसाने के उद्देश्य से उससे पूछा, 36 “गुरु, व्यवस्था में सबसे बड़ा आदेश कौन सा है?”

37 यीशु ने उससे कहा, “‘सम्पूर्ण मन से, सम्पूर्ण आत्मा से और सम्पूर्ण बुद्धि से तुझे अपने परमेश्वर प्रभु से प्रेम करना चाहिये।’(A) 38 यह सबसे पहला और सबसे बड़ा आदेश है। 39 फिर ऐसा ही दूसरा आदेश यह है: ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम कर जैसे तू अपने आप से करता है।’(B) 40 सम्पूर्ण व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं के ग्रन्थ इन्हीं दो आदेशों पर टिके हैं।”

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सबसे बड़ी आज्ञा

(मारक 12:28-34)

34 जब फ़रीसियों को यह मालूम हुआ कि येशु ने सदूकियों का मुँह बंद कर दिया है, वे स्वयं एकजुट हो गए. 35 उनमें से एक व्यवस्थापक ने येशु को परखने की मनसा से उनके सामने यह प्रश्न रखा: 36 “गुरुवर, व्यवस्था के अनुसार सबसे बड़ी आज्ञा कौन सी है?” 37 येशु ने उसे उत्तर दिया, “तुम प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे हृदय, अपने सारे प्राण तथा अपनी सारी समझ से प्रेम करो. 38 यही प्रमुख तथा सबसे बड़ी आज्ञा है. 39 ऐसी ही दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा है अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम करो जैसे तुम स्वयं से करते हो. 40 इन्हीं दो आदेशों पर सारी व्यवस्था और भविष्यवाणियां आधारित हैं.”

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