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परमेश्वर की प्रेमपात्र सन्तान होने के नाते, तुम परमेश्वर के पीछे चलनेवाले बनो. तुम्हारा स्वभाव प्रेममय हो, जिस प्रकार मसीह ने तुमसे प्रेम किया है. वह हमारे लिए परमेश्वर के सामने स्वयं मनमोहक सुगन्धित भेंट व बलि हो गए.

जैसा कि पवित्र लोगों के लिए सही है, तुम्हारे बीच व्यभिचारिता, किसी भी प्रकार की मलिनता और किसी भी प्रकार के लोभ का वर्णन तक न हो; और न ही तुम्हारे बीच निर्लज्जता और मूर्खता भरी बातचीत या अश्लील मज़ाक हो, जो हमेशा ही व्यर्थ है परन्तु तुम्हारे बीच धन्यवाद ही सुना जाए क्योंकि तुम यह अच्छी तरह से जानते हो कि किसी भी व्यभिचारी, मलिन तथा लोभी व्यक्ति का, जो मूर्तिपूजक ही है, मसीह और परमेश्वर के राज्य में मीरास नहीं है. कोई तुम्हें व्यर्थ की बातों के जाल में न फँसा पाए क्योंकि इन सबके कारण अनाज्ञाकारी व्यक्ति परमेश्वर के क्रोध के भागी होते हैं. इसलिए उनके सहभागी न बनो.

इसके पहले तुम अन्धकार थे, मगर अब प्रभु में ज्योति हो; इसलिए ज्योति की सन्तान की तरह स्वभाव करो; क्योंकि ज्योति का फल सब प्रकार की धार्मिकता, सदाचार और सच में है; 10 जिससे यह पुष्टि हो कि हमारे किन कामों से परमेश्वर संतुष्ट होते हैं. 11 अन्धकार के निष्फल कामों में शामिल न हो परन्तु उन्हें संकोच प्रकाश में लाओ. 12 उन कामों की तो चर्चा करना भी लज्जास्पद है, जो अनाज्ञाकारियों द्वारा गुप्त में किए जाते हैं. 13 ज्योति में आने पर सब कुछ प्रकट हो जाता है 14 क्योंकि ज्योति ही है, जो सब कुछ प्रकट करती है. इस पर कहा गया है:

सोए हुए, जागो!
    मरे हुओं में से जी उठो!
मसीह तुम पर ज्योति चमकाएंगे.

15 अपने स्वभाव के विषय में विशेष रूप से सावधान रहो. तुम्हारा स्वभाव मूर्खों-सा न हो परन्तु बुद्धिमानों-सा हो. 16 समय का सदुपयोग करो क्योंकि यह बुरे दिनों का समय है. 17 इसलिए निर्बुद्धि नहीं परन्तु प्रभु की इच्छा के ज्ञान के लिए विवेक प्राप्त करो. 18 दाखरस से मतवाले न हो क्योंकि यह लुचपन है परन्तु पवित्रात्मा से भर जाओ. 19 तब प्रभु के लिए आपस में सारे हृदय से तुम भजन, स्तुतिगान व आत्मिक गीत गाते रहो. 20 हर एक विषय के लिए हमेशा हमारे प्रभु मसीह येशु के नाम में पिता परमेश्वर के प्रति धन्यवाद देते रहो.

दाम्पत्य नैतिकता के लिए निर्देश

21 मसीह में आदर के कारण एक दूसरे के प्रति समर्पित रहो.

22 पत्नी अपने पति के अधीन उसी प्रकार रहे, जैसे प्रभु के 23 क्योंकि पति उसी प्रकार अपनी पत्नी का सिर है, जिस प्रकार मसीह अपनी देह कलीसिया के सिर हैं, जिसके वह उद्धारकर्ता भी हैं. 24 जिस प्रकार कलीसिया मसीह के आधीन है, उसी प्रकार पत्नी हर एक विषय में पति के आधीन रहे.

25 पति अपनी पत्नी से उसी प्रकार प्रेम करे जिस प्रकार मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और स्वयं को उसके लिए बलिदान कर दिया 26 कि वह उसे वचन के स्नान के द्वारा पाप से शुद्ध कर अपने लिए अलग करे 27 कि उसे अपने लिए ऐसी तेजस्वी कलीसिया बना कर पेश करें जिसमें न कोई कलंक, न कोई झुर्री, न ही इनके जैसा कोई दोष हो परन्तु वह पवित्र व निष्कलंक हो. 28 इसी प्रकार पति के लिए उचित है कि वह अपनी पत्नी से वैसे ही प्रेम करे जैसे अपने शरीर से करता है. वह, जो अपनी पत्नी से प्रेम करता है, स्वयं से प्रेम करता है 29 क्योंकि कोई भी अपने शरीर से घृणा नहीं करता परन्तु स्नेहपूर्वक उसका पोषण करता है—जिस प्रकार मसीह कलीसिया का करते हैं 30 क्योंकि हम उनके शरीर के अंग हैं. 31 इस कारण पुरुष अपने माता-पिता का मोह त्याग कर अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा और वे दोनों एक तन हो जाएँगे 32 यह एक गहरा भेद है और मैं यह मसीह और कलीसिया के संदर्भ में उपयोग कर रहा हूँ 33 फिर भी तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम करें और पत्नी अपने पति का सम्मान करे.